⚛️मिस्र की (नील नदी घाटी ) सभ्यता⚛️

इतिहासकारों ने मिस्र की सभ्यता को चार भागों में विभाजित किया है। जो कि निम्नलिखित है
➡️प्राचीन मिस्र में 30 राज्य वंश के शासन का प्रमाण मिलता है -साक्ष्यों के आधार पर। हालांकि कुछ लिखित साक्ष्य तथा कुछ अलिखित साक्ष्य मिलते है।:-
➡️ चारों युगीन कालखंड को एक-एक करके विस्तार से पड़ें  :-


पिरामिड युग :-1 प्राचीन मिस्र के मिनीज नामक शासक ने सबसे पहले राजतंत्र को स्थापित किया और मिस्र की नील नदी घाटी पर शासन किया था।
2  सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व समकालीन शासक था जिसने मिस्र की सभ्यता पर शासन किया मिनीजी ने अपनी राजधानी मैंफिस को बनाया और प्राचीन मिस्र में राजाओं को मान सम्मान के अनेक काम किया।
3 मैनेज के सम्मान में सभी जानता मैं नीच गोपाराम की संज्ञा देने लगा हो।मिस्र में राजा को फराह कहां जाता है और फराओ का शाब्दिक अर्थ होता है सबसे बड़ा भवन जहां परमात्मा तथा ईश्वर निवास करता



➡️हेरोडोटस:-यह फारसी साम्राज्य में पैदा हुए।यह पढ़ाई में कुशाग्र एवं मेधावी थे उनको पढ़ाई में काफी रूचि तथा लेखन कला में बहुत ही मन लगता था। उन्होंने इतिहास को बहुत ही विस्तार से लिखा है इसलिए इन्हें इतिहास के पिता भी कहा जाता है। कुछ इतिहासकार इन के इतिहास कोइतिहासकारों ने  इसीलिए इसे इतिहास का झूठ के पिता  भी कहा जाता है
हेरोडोटस:- मिस्र, अफ्रीका, एशिया माइनर आदि  सभी जगह पर घुमा और यहां के इतिहासओं का संकलन कर किताब का रूप दिया।
उन्होंने इतिहास के कुल 9 पुस्तक लिखे हैं जिसके कि जिस में से सबसे प्रमुख किताब हिस्टोरिका  है।
उन्होंने अपनी किताब हिस्टोरिका का में फारस तथा  ग्रिस के बीच के युद्ध का वर्णन बहुत ही विस्तार से किया है यह युद्ध 499 से 479 BC तक चला था।
➡️ इतिहासकारों ने अभी तक हेरोडोटस के मृत्यु के कारण को पता नहीं कर पाए हैं तथा उनकी मृत्यु के समय सीमा भी निश्चित नहीं है अनुमान लगाया जाता है कि इनकी मृत्यु 420 ईसा पूर्व को हुई थी।
इतिहासकारों के अनुसार मिस्र की सभ्यता काफी पुरानी है इनकी सभ्यता का समय सीमा 5000 ईसा पूर्व का मानी जाती है। मिस्र की सभ्यता की खोज में नेपोलियन का महत्वपूर्ण भूमिका है। नेपोलियन जब मिस्र के अभियान में गया था उस समय उनके सैनिकों के द्वारा सैनिकों की युद्ध की सुरक्षा के लिए खूब खुदाई गए गड्ढे से मिस्र की सभ्यता के प्रमाण मिले थे। और इस प्रकार जाने अनजाने में मिस्र की सभ्यता का खोजने नेपोलियन का एक महत्वपूर्ण योगदान सामने आया।
➡️ सर्वप्रथम मिश्रित के अभिलेखों का खोज डॉ० टोमर यंग ने इतिहास ने खोजा तथा बाद में पता चला कि यह अभिलेख रानी क्लियोपेट्रा तथा टोलमी नामक  शासक ने अंकित करवाई थी। हालांकि इस अभिलेख को 1799 में सिंपोलो ने पढ़ने में सफलता हासिल की सिंपोलो ,नेपोलियन के साथ हीके साथ ही सैन्य अभियान में आया था। सिंपोलो ने ही इस लिपि को सबसे पहले कारतूस नाम दिया था।
भारतीय शासकों के तरह प्राचीन मिस्र के शासक भी लेखन कला में रुचि नहीं लेते इस कारण से मिस्र के इतिहास का सटीक जानकारी मिलने में काफी परेशानी होती है।परंतु जब मिस्र में यूनानी यों का अधिकार होता है तो इन्होंने इतिहास को  संग्रहित कराने लगते हैं और इतिहास की जानकारी लेने में रुचि रखते हैं।यूनानी शासक टॉलमी फिलाडेल्फिया प्रथम ने हेरोडोरस के निवासी मैंनेजो को इतिहास को संग्रहित करने का कार्य में लगा दिया
➡️ मैंनेजो यूनानी शासक टॉलमी फिलाडेल्फिया प्रथम का पुजारी भी था मैंने जो ने मिस्र के इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर इतिहास को संकलित किया और एक पुस्तक का रूप में परिवर्तन किया। मैंने जो तू के इस कार्य का मिस्र के इतिहास में   वही हीगदान है जो बेबिलोनिया के इतिहास में ब्रोसिस है।क्षेत्रफल की दृष्टि से मिश्रा हमारे केरल राज्य के समान है लेकिन नील नदी घाटी के कारण उसका क्षेत्र काफी उपजाऊ था जिसके कारण से लोगों को इस क्षेत्र में अपनी और आकर्षित । मैंनेजो के संकलित इतिहास के अनुसार मिस्र के प्राचीन राजवंश को 30 राजवंशों के शासनकाल में विभाजित किया है और उसका लिखित प्रमाण मैंने जीत हो के किताब से मिलता
मिस्र के चौथे राजवंश के शासनकाल में पिरामिड का निर्माण हुआ था तथा सर्वप्रथम हरा हो सुकू राजा के शासनकाल में गीजा का विश्व प्रसिद्ध पिरामिड का निर्माण कराया गया था इतिहासकारों का मानना है कि सफदर के पिरामिड का निर्माण भी राजा खुफु कराया है।
➡️ इमहोटेप को प्राचीन मिस्र का महान वास्तुकार माना जाता था जो कि उन्होंने बहुत से भवनों तथा पिरामिड का निर्माण में योगदान भी दिया है । इमहोटेप को खुफु समकालीन माना जाता है। पिरामिड में धाराओं की समाधि होती थी जिसमें फराहो कि मृतक शरीर को मम्मी के रूप में सुरक्षित रखा जाता था और मम्मी को जमीन पर दफनाकर उसके ऊपर में पिरामिड का निर्माण किया जाता था।
मिश्रा वासी आत्मा और शरीर को अलग अलग मानते थे। मिश्र वासियों का मानना था कि आत्मा पर लोग चला जाता है और शरीर इसी लोक में रह जाता है। मिश्रा वासियों का मानना था कि आत्मा पूरा जन्म लेता है तथा शरीर पुनः जीवित हो जाता है इस कारण से शरीर की सुरक्षा एवं ध्यान विशेष प्रकार से रखा जाता था। 
➡️हालांकि मिस्र सभ्यता की जानकारी नेपोलियन की सेनाओं के नील नदी के राजूदा नामक जगह पर सुरक्षित लड़ने के लिए गड्ढा खोदे जा रहा था तभी प्राचीन मिस्र के अभिलेख मिले या अभिलेख रोजदा नामक जगह पर मिला इसलिए इसका नाम राजू दा रखा गया और यहीं से मिस्र सभ्यता का अस्तित्व सामने आने लगायह अभिलेख मिस्र के शासक कॉलोनी का अभिलेख था और मिस्र के अधिकतर अभिलेख यूनानी हायरओन लाइफ तथा डायमेट्रिक लिपियों द्वारा लिखी गई तथा अंकित कराया गया था। इन लिपियों को पढ़ने में इतिहासकारों को काफी संघर्ष करना पड़ा। मिस्र के चौथे शासक को खुफु ने विशाल मूर्ति बनाई और इन मूर्तियों के शरीर मानव का था तथा बाकी शरीर शेर का होता था।
➡️राजाओं के द्वारा बनाया गया मूर्तियों को इतिहासकारों ने स्फिंगस  कहा जबकि मिस्र वासी इन मूर्तियों को  "हूं" नाम से जानते थे खूब का शाब्दिक अर्थ होता है चौकीदार । मिस्रवासी राजा खुफु से काफी परेशान रहते थे इसलिए इसको मिश्र वासी अबुलहोल के नाम से भी जानते थे अब हॉल का शाब्दिक अर्थ होता है आतंक का पिता। इतिहासकारों का मानना है कि मिस्र  में 2 जनजातियों के बीच में युद्ध होता है। इसके बाद जो जनजाति हार जाती है वह जनजाति अरब ईरान , इराक वाले क्षेत्र में आकर बस जाती है जैसे कारण नील नदी घाटी की सभ्यता के जनजाति के लोग अरब ईरान इराक के क्षेत्रों में भी पाई जाती है और इन जातियों में काफी समानता है मिस्र के लोग हाला की बहू देव आदि प्रकृति के उपासक थे लेकिन कई राजाओं ने एक ही स्वर की मन्नता को स्थापित करने की कोशिश की। अरब ईरान इराक वाले क्षेत्र में तथा मिस्र की सभ्यता वाला क्षेत्र में धार्मिक मान्यताओं में काफी अंतर है तथा अरब इराक ईरान वाले क्षेत्र की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता थी जबकि नील नदी घाटी में मिस्र की सभ्यता थी। इतिहासकारों का मानना है कि मिस्र में युद्ध के दौरान हारे हुए जनजाति ईरान अरब इराक वाले क्षेत्र में बस जाते हैं । और मेसोपोटामिया के लोगों की संस्कृति, सभ्यता, बोली-चाली ,रहन-सहन आदि को अपना लेती है और इन लोगों के साथ घुलमिल जाती ।मिश्र वासी एवं मेसोपोटामिया वासी में एक समानता थी कि दोनों ही सूर्य के उपासक थे और दोनों सूर्य देवता को अपना आराध्य मानते थ।
वन

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