✴️मिस्र की सभ्यता का संपूर्ण इतिहास✴️
इतिहासकारों ने मिस्र की सभ्यता को चार भागों में विभाजित किया है। जो कि निम्नलिखित है
➡️प्राचीन मिस्र में 30 राज्य वंश के शासन का प्रमाण मिलता है -साक्ष्यों के आधार पर। हालांकि कुछ लिखित साक्ष्य तथा कुछ अलिखित साक्ष्य मिलते है।:-
➡️ चारों युगीन कालखंड को एक-एक करके विस्तार से पड़ें :-
पिरामिड युग :-1 प्राचीन मिस्र के मिनीज नामक शासक ने सबसे पहले राजतंत्र को स्थापित किया और मिस्र की नील नदी घाटी पर शासन किया था।
2 सिंधु घाटी सभ्यता के पूर्व समकालीन शासक था जिसने मिस्र की सभ्यता पर शासन किया मिनीजी ने अपनी राजधानी मैंफिस को बनाया और प्राचीन मिस्र में राजाओं को मान सम्मान के अनेक काम किया।
3 मैनेज के सम्मान में सभी जानता मैं नीच गोपाराम की संज्ञा देने लगा हो।मिस्र में राजा को फराह कहां जाता है और फराओ का शाब्दिक अर्थ होता है सबसे बड़ा भवन जहां परमात्मा तथा ईश्वर निवास करता
➡️हेरोडोटस:-यह फारसी साम्राज्य में पैदा हुए।यह पढ़ाई में कुशाग्र एवं मेधावी थे उनको पढ़ाई में काफी रूचि तथा लेखन कला में बहुत ही मन लगता था। उन्होंने इतिहास को बहुत ही विस्तार से लिखा है इसलिए इन्हें इतिहास के पिता भी कहा जाता है। कुछ इतिहासकार इन के इतिहास कोइतिहासकारों ने इसीलिए इसे इतिहास का झूठ के पिता भी कहा जाता है
हेरोडोटस:- मिस्र, अफ्रीका, एशिया माइनर आदि सभी जगह पर घुमा और यहां के इतिहासओं का संकलन कर किताब का रूप दिया।
उन्होंने इतिहास के कुल 9 पुस्तक लिखे हैं जिसके कि जिस में से सबसे प्रमुख किताब हिस्टोरिका है।
उन्होंने अपनी किताब हिस्टोरिका का में फारस तथा ग्रिस के बीच के युद्ध का वर्णन बहुत ही विस्तार से किया है यह युद्ध 499 से 479 BC तक चला था।
➡️ इतिहासकारों ने अभी तक हेरोडोटस के मृत्यु के कारण को पता नहीं कर पाए हैं तथा उनकी मृत्यु के समय सीमा भी निश्चित नहीं है अनुमान लगाया जाता है कि इनकी मृत्यु 420 ईसा पूर्व को हुई थी।
इतिहासकारों के अनुसार मिस्र की सभ्यता काफी पुरानी है इनकी सभ्यता का समय सीमा 5000 ईसा पूर्व का मानी जाती है। मिस्र की सभ्यता की खोज में नेपोलियन का महत्वपूर्ण भूमिका है। नेपोलियन जब मिस्र के अभियान में गया था उस समय उनके सैनिकों के द्वारा सैनिकों की युद्ध की सुरक्षा के लिए खूब खुदाई गए गड्ढे से मिस्र की सभ्यता के प्रमाण मिले थे। और इस प्रकार जाने अनजाने में मिस्र की सभ्यता का खोजने नेपोलियन का एक महत्वपूर्ण योगदान सामने आया।
➡️ सर्वप्रथम मिश्रित के अभिलेखों का खोज डॉ० टोमर यंग ने इतिहास ने खोजा तथा बाद में पता चला कि यह अभिलेख रानी क्लियोपेट्रा तथा टोलमी नामक शासक ने अंकित करवाई थी। हालांकि इस अभिलेख को 1799 में सिंपोलो ने पढ़ने में सफलता हासिल की सिंपोलो ,नेपोलियन के साथ हीके साथ ही सैन्य अभियान में आया था। सिंपोलो ने ही इस लिपि को सबसे पहले कारतूस नाम दिया था।
भारतीय शासकों के तरह प्राचीन मिस्र के शासक भी लेखन कला में रुचि नहीं लेते इस कारण से मिस्र के इतिहास का सटीक जानकारी मिलने में काफी परेशानी होती है।परंतु जब मिस्र में यूनानी यों का अधिकार होता है तो इन्होंने इतिहास को संग्रहित कराने लगते हैं और इतिहास की जानकारी लेने में रुचि रखते हैं।यूनानी शासक टॉलमी फिलाडेल्फिया प्रथम ने हेरोडोरस के निवासी मैंनेजो को इतिहास को संग्रहित करने का कार्य में लगा दिया
➡️ मैंनेजो यूनानी शासक टॉलमी फिलाडेल्फिया प्रथम का पुजारी भी था मैंने जो ने मिस्र के इतिहास के साक्ष्यों के आधार पर इतिहास को संकलित किया और एक पुस्तक का रूप में परिवर्तन किया। मैंने जो तू के इस कार्य का मिस्र के इतिहास में वही हीगदान है जो बेबिलोनिया के इतिहास में ब्रोसिस है।क्षेत्रफल की दृष्टि से मिश्रा हमारे केरल राज्य के समान है लेकिन नील नदी घाटी के कारण उसका क्षेत्र काफी उपजाऊ था जिसके कारण से लोगों को इस क्षेत्र में अपनी और आकर्षित । मैंनेजो के संकलित इतिहास के अनुसार मिस्र के प्राचीन राजवंश को 30 राजवंशों के शासनकाल में विभाजित किया है और उसका लिखित प्रमाण मैंने जीत हो के किताब से मिलता
मिस्र के चौथे राजवंश के शासनकाल में पिरामिड का निर्माण हुआ था तथा सर्वप्रथम हरा हो सुकू राजा के शासनकाल में गीजा का विश्व प्रसिद्ध पिरामिड का निर्माण कराया गया था इतिहासकारों का मानना है कि सफदर के पिरामिड का निर्माण भी राजा खुफु कराया है।
➡️ इमहोटेप को प्राचीन मिस्र का महान वास्तुकार माना जाता था जो कि उन्होंने बहुत से भवनों तथा पिरामिड का निर्माण में योगदान भी दिया है । इमहोटेप को खुफु समकालीन माना जाता है। पिरामिड में धाराओं की समाधि होती थी जिसमें फराहो कि मृतक शरीर को मम्मी के रूप में सुरक्षित रखा जाता था और मम्मी को जमीन पर दफनाकर उसके ऊपर में पिरामिड का निर्माण किया जाता था।
मिश्रा वासी आत्मा और शरीर को अलग अलग मानते थे। मिश्र वासियों का मानना था कि आत्मा पर लोग चला जाता है और शरीर इसी लोक में रह जाता है। मिश्रा वासियों का मानना था कि आत्मा पूरा जन्म लेता है तथा शरीर पुनः जीवित हो जाता है इस कारण से शरीर की सुरक्षा एवं ध्यान विशेष प्रकार से रखा जाता था।
➡️हालांकि मिस्र सभ्यता की जानकारी नेपोलियन की सेनाओं के नील नदी के राजूदा नामक जगह पर सुरक्षित लड़ने के लिए गड्ढा खोदे जा रहा था तभी प्राचीन मिस्र के अभिलेख मिले या अभिलेख रोजदा नामक जगह पर मिला इसलिए इसका नाम राजू दा रखा गया और यहीं से मिस्र सभ्यता का अस्तित्व सामने आने लगायह अभिलेख मिस्र के शासक कॉलोनी का अभिलेख था और मिस्र के अधिकतर अभिलेख यूनानी हायरओन लाइफ तथा डायमेट्रिक लिपियों द्वारा लिखी गई तथा अंकित कराया गया था। इन लिपियों को पढ़ने में इतिहासकारों को काफी संघर्ष करना पड़ा। मिस्र के चौथे शासक को खुफु ने विशाल मूर्ति बनाई और इन मूर्तियों के शरीर मानव का था तथा बाकी शरीर शेर का होता था।
➡️राजाओं के द्वारा बनाया गया मूर्तियों को इतिहासकारों ने स्फिंगस कहा जबकि मिस्र वासी इन मूर्तियों को "हूं" नाम से जानते थे खूब का शाब्दिक अर्थ होता है चौकीदार । मिस्रवासी राजा खुफु से काफी परेशान रहते थे इसलिए इसको मिश्र वासी अबुलहोल के नाम से भी जानते थे अब हॉल का शाब्दिक अर्थ होता है आतंक का पिता। इतिहासकारों का मानना है कि मिस्र में 2 जनजातियों के बीच में युद्ध होता है। इसके बाद जो जनजाति हार जाती है वह जनजाति अरब ईरान , इराक वाले क्षेत्र में आकर बस जाती है जैसे कारण नील नदी घाटी की सभ्यता के जनजाति के लोग अरब ईरान इराक के क्षेत्रों में भी पाई जाती है और इन जातियों में काफी समानता है मिस्र के लोग हाला की बहू देव आदि प्रकृति के उपासक थे लेकिन कई राजाओं ने एक ही स्वर की मन्नता को स्थापित करने की कोशिश की। अरब ईरान इराक वाले क्षेत्र में तथा मिस्र की सभ्यता वाला क्षेत्र में धार्मिक मान्यताओं में काफी अंतर है तथा अरब इराक ईरान वाले क्षेत्र की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता थी जबकि नील नदी घाटी में मिस्र की सभ्यता थी। इतिहासकारों का मानना है कि मिस्र में युद्ध के दौरान हारे हुए जनजाति ईरान अरब इराक वाले क्षेत्र में बस जाते हैं । और मेसोपोटामिया के लोगों की संस्कृति, सभ्यता, बोली-चाली ,रहन-सहन आदि को अपना लेती है और इन लोगों के साथ घुलमिल जाती ।मिश्र वासी एवं मेसोपोटामिया वासी में एक समानता थी कि दोनों ही सूर्य के उपासक थे और दोनों सूर्य देवता को अपना आराध्य मानते थ।
🔯सामंत युगीन कालखंड🔯
मिस्र की सभ्यता में इस कालखंड का बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है यह कालखंड मिश्र के सातवें शासक के शासनकाल से प्रारंभ होती है इतिहासकार इस सामंतवादी युग का प्रारंभ मिश्र के राजाओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कालखंड मानते हैं। मिश्र के राजाओं ने जब से प्रशासन एवं सामाजिक तथा राजनीतिक मजबूती को बढ़ाने के लिए तथा शासन को अच्छी तरह से करने के लिए सामंतों का सहयोग लेने लगे इसी के समय से सामंतवादी युगीन का कालखंड प्रारंभ होता है! सामंत का मतलब होता है राजा के सहयोगी जो लोग राजा के प्रशासन को चलाने में मदद करते हैं जैसे कि मंत्री, महामंत्री ,राजमाता, राजरानी ,राजकुमारआदि! सामंती युग के समय से ही राजनीतिक सामाजिक जीवन राजाओं के लिए कठिन हो गया था और चीन का संबंध विदेशी राजाओं के साथ एक संघर्ष पूर्ण रहा था।
सामंतवादी युद्ध के समय विदेशी शासकों का आक्रमण प्रारंभ हो गया और इसी समय विदेशी शासक की हांक्कीसास का आक्रमण होता है इसीलिए मिश्री के साथ राहों के समय को विदेशी आक्रांता अराजकता का शासन काल कहा जाता है ।सामंतवादी युग के जनक मिश्र के सातवें राजवंश को माना जाता है। इसी के समय मिस्र की राजधानी स्थानांतरित होकर मेंफिज से थीबस स्थानतरित हो जाती है। इस समय मिश्र के बड़े बड़े नगरों का निर्माण हुआ परंतु जनता की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है मिस्र में अव्यवस्था फैल चुका था जनता राजाओं के खिलाफ होने लगी थी। इसी अव्यवस्था का लाभ उठाकर सीरिया के सिमटिक जनजातियों ने मिस्र पर आक्रमण कर दिया।इस आक्रमण के दौरान समिति की जनजातियों ने घोड़े औरतों का प्रयोग किया था इसी के कारण मिस्र की एक उत्तरी भाग में मिस्र की हार होती है और यहां पर सिमिट्रिक जनजातियों ने अपना बसेरा बना लिया और लंबे समय तक यहां शासन करते हैं और इसके बाद मिस्र वासी को यहां से भगाकर दक्षिण की ओर खदेड़ दिया जाता है।
सिमिट्रिक जनजातियों के विजय के कई कारण हैं जैसे
1 मिस्र के लोगों को मैदानी भागों में लड़ने का अनुभव नहीं था और यह युद्ध मैदानी भागों में हुआ।
2 मिस्र वासियों की सेना की कुशलता में कमी थी मिश्रा वासियों की सेना प्रशिक्षित नहीं थी जबकि सिमिट्रिक जनजातियों की सेना प्रशिक्षित थी और लड़ाकू भी थे
3 सिमिट्रिक जातियों के पास हथियार एवं संसाधन के अच्छे समूह था जबकि मिश्र वासियों में इसकी अभाव थीIइसके बाद समय तक जाति के लोग नहीं नदी घाटी के उत्तरी भाग में 200 वर्षों तक शासन करते हैं फिर मिश्री के शक्तिशाली राजाओं ने इन लोगों को मार के भगा ते हैं।मिस्र के उत्तरी भाग में शासन करने वाले जनजाति यानी सिमिट्रिक की जनजाति ने हायकंस वंश की स्थापना करते हैं।हालांकि कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यह जनजाति नील नदी पर बसने से पहले ही हायकंस वंश की स्थापना किया था और यह वंश प्रारंभ में सीरिया एवं अरब देशों की जनजाति है।
✡️ साम्राज्यवादी कालखंड 1800 से 1090 BC तक✡️
इससे पहले हमने देखा कि मिस्र में सामंतवादी युग का कालखंड चल रहा था तो मिस्र के लोग अपनी प्रशासन व्यवस्था को चलाने के लिए सामंतों का सहयोग ले रहे थे अभी तक इन लोगों के मन में साम्राज्य विस्तार की कोई भी नीति नहीं आई थी लेकिन अब मिश्र वासियों तथा अन्य देशों के राजाओं ने साम्राज्य के विस्तार के लिए करके एक राजनीतिक विचार आता है और इसके बाद लोगों के मन में स्थानों जमीन जायदाद आदि को लेकर के एक विशेष स्थान प्राप्त हो जाता है इसी को साम्राज्यवादी कालखंड करते हैं।
1580 मे अलमास प्रथम ने सेमैट्रिक जनजाति के लोगों को सत्ता से हटा दिया तथा हम कह सकते हैं कि हाइकस वंश का नष्ट कर दिया है।इसके बाद पूरी मिश्र नदी घाटी सभ्यता पर फिर से मिश्र वासियों का अधिकार हो गया और सिमेट्रीक जनजाति के लोग यहां से प्रस्थान कर जाते हैं अलमास प्रथम ने सीरिया तथा फिलिस्तीन को भी जीता और अपने साम्राज्य में मिला लिया। अलमास प्रथम मिश्रा राजवंश के 18 शासक था। इसके बाद मिस्र वासियों का शासन किया सीरिया एवं फिलिस्तीन में 1580 से 1350 BC तक शासन चलता है इसके बाद यहां पर स्थानीय जनजातियों के द्वारा विद्रोह कर दिया जाता है फिर मिस्र की सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा श्री अवस्थी ने पुनः स्थानीय जनजाति का शासन हो जाता है।अलमास प्रथम ने अपना शासन का विस्तार किया तथा सुशासन को व्यवस्थित किया इस कारण मिश्र ने साम्राज्यवादी युग का जनक ऑलमोस प्रथम को कहा जाता है।
➡️ -19 एवं 20 व राजवंशी सत्ता 1350 से 1150 तक रखा है लेकिन कोई विशेष घटना नहीं घटती है लेकिन इस समय मिस्र से सीरिया तथा filisteen चला जाता है हालांकि मिस्र कोई भी आक्रमण नहीं होता है।21 व राजवंश के समय विदेशी आक्रमण होता है और आक्रमणकारी होते हैं असीरियन सभ्यता के लोग तथा सीरिया के राजवंश के लोग।इन आक्रमणकारियों के कारण मिश्र की कुछ हिस्सा चीन जाती है और पून: मिश्रा के उत्तरी हिस्से पर विदेशी आक्रमणकारियों का अधिकार हो जाता है! इस कारण एक ही 21 राजवंश का पतन का काल कहते। 22 एवं 24 वें राजवंश का समय 945 -712 BC तक चलता है और इस युग को लिवइन्न का युग कहा जाता है क्योंकि इस समय श्रिया तथा असीरियन लोगों का एक मजबूत संगठन बन चुका था जिसने मिश्र पर आक्रमण किया और फिर मिस्र की बहुत बड़ी भूमि पर अधिकार जता लिया।इस प्रकार 25 राज्य वंश के समय नील नदी घाटी के उत्तरी भाग में असीरियन सभ्यता का शासन हो गया।
➡️ -इसके बाद 26 व राजवंश आता है जो कि 662 से 525 साल पूर्व तक चलता है इसे पुनः स्थापना का युग कहा जाता है क्योंकि इसने फिर से असीरियन लोगों को पराजित कर वहां पर मिस्र की सभ्यता का आरंभ किया इस प्रकार पुनः फिर से पूरी नील नदी घाटी पर मिस्र सभ्यता का शासन हो गया! इसके बाद मिस्र में नवीन साम्राज्यवाद कालखंड को फारस शासकों ने धीरे-धीरे आक्रमणकारियों के द्वारा समाप्त कर देता है और मिश्र पर कब्जा करने लगता है। इस समय भारत के शासक तथा मिस्र के शासकों के बीच में काफी लंबी संघर्ष की समय सीमा होती है। अंत में पूरी नील नदी सभ्यता पर फारस के शासकों का शासन हो जाता है और यह समय होता है 322 ईसा पूर्व। इसके बाद मिस्र की शासन एवं सभ्यता समाप्त हो जाती है और पूरी नील नदी घाटी पर फारस के राजाओं का शासन पूरे मिस्र सभ्यता पर हो जाता है।
NOTE:-अब हमें 21वें एवं 26 वें राजवंश के बारे में विस्तार से पढ़ना है तथा इसके विशेष एवं महत्वपूर्ण राजाओं के बारे में जानना है।
हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि विश्व राजवंश तक सीरिया तथा फिलिस्तीन का मिश्र के कुछ भागों पर अधिकार हो चुका था।इसके बाद एक किस राज्य वंश के राजाओं ने उन्हें अपना अधिकार स्थापित करके इन सभी विदेशी शासकों को भगा देते हैं।किस राजवंश का सबसे महत्वपूर्ण एवं वीर शासक एवं योग एवं महत्वपूर्ण शासक तथा उनकी क्या भूमिका रही इनके बारे में हमें अच्छी तरह से जानना
➡️ थॉटमौस प्रथम= यह मिस्र के 21 वे राजवंश शासक था। इसने अपने शासनकाल में खुद को दफनाने का स्थान निश्चित कर लिया था इसने अपने सेनाओं को प्रशिक्षित किया तथा युद्ध सामग्री की व्यवस्था किया लेकिन अपने साम्राज्य विस्तार में अधिक योगदान नहीं दे पाया और इनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई लेकिन यदि जीवित रहता तो साम्राज्य का विस्तार करता इसकी गतिविधियों से ऐसा प्रतीत होता था।
#:-हितोसेसूट=यह थॉटमौस प्रथम की पुत्री थी जो कि मिस्र की प्रथम महिला शासिका बनी तथा दुनिया की प्रथम महिला शासिका भी रही। इसके समय काल को मिश्रिख का स्वर्ण काल कहा जाता है इसे मिश्र के साम्राज्य विस्तार पर ध्यान नहीं दिया। और इसने तो युद्ध के बारे में कभी सोचा ही नहीं। लेकिन इस के शासनकाल में व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में बहुत ज्यादा वृद्धि हुआ और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया। थॉटमौस प्रथम की दो पुत्र एवं एक पुत्री थी जिसका नाम रखा गया था। पुत्री का नाम हितोसेसूट रखा था जो कि विश्व में प्रसिद्ध हुई एक महिला शासक के नाम से। तथा इसके प्रथम पुत्र का नाम थॉटमौस दितीय था यह एक आयोग पुत्र था। एवं दूसरे पुत्र का नाम थॉटमौस तृतीय था। यह एक योग्य वीर एवं साहसी पुत्र था। इस कारण ही हितोसेसूट अपनी शादी इसी से किया।
➡️ थॉटमौस तृतीय=इसने अपनी बहन हितोसेसूट से शादी की थी । यह वीर एवं योग शासक था। इसके समय मिश्र असम राज्य की सीमा सबसे बड़ी थी। इसने अपना विशाल साम्राज्य निर्माण के लिए युद्ध आरंभ किया और विशाल साम्राज्य का निर्माण भी करता है। इसके समराज इतना विशाल था कि इसने अपने साम्राज्य को प्रशासन की सुविधा के लिए 55 प्रांतों में बांटा और वहां पर शासन के लिए गवर्नर नियुक्त किएइतिहास का थॉटमौस तृतीय को मिस्र का नेपोलियन कहते हैं क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था इसको विश्व इतिहास का प्रथम विजेता सेनानायक तथा प्रथम समराज निर्माण करता की उपाधि भी दिया जाता है।इसने अपने विशाल साम्राज्य को नियंत्रण करने के लिए दो प्रधानमंत्री तथा दो मंत्री मंडल का निर्माण भी कराया लेकिन दोनों मंत्रिमंडल को नियंत्रण इसकी पत्नी तथा बहन करती थी और यह युद्ध में व्यस्त रहता था कभी भी अपने मंत्रिमंडल पर अधिक टाइम नहीं दे पाता था इसलिए मंत्रिमंडल की देखरेख इसकी पति नहीं करती थी।
इसने एशियाई परदेस पर 17 बार आक्रमण किया था इसके प्रधानमंत्री रमेमीर इसे ईश्वर की उपाधि तथा ईश्वर मानता था।यह मंत्री कहता था कि हमारे शासक को सब कुछ मालूम है इसको सब के बारे में पता रहता है यह ज्ञान की देता है इस मंत्री के अनुसार थॉटमौस तृतीय सभी कार्यों को कर सकता है।थॉटमौस तृतीय ने जीते हुए क्षेत्रों के राजपूतों को लूटा लेकिन जनता को कष्ट नहीं दिया हालांकि विजिट क्षेत्रों को अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया और वहां के शासकों से धन वार्षिक के रूप में लिए। इसलिए मिस्र तत्कालीन दुनिया का सबसे समृद्ध साम्राज्य बन गया थॉटमौस तृतीय स्वभाव से हम निरंकुश उधार एवं सुव्यवस्थित शासक मान सकते हैं जब उसकी पत्नी शासिका थी तब इसको बिल्कुल महत्व नहीं दिया था इस कारण अपनी पत्नी द्वारा बनाए गए सभी इमारतों को नष्ट करके फिर से इसी जगह नए भवन बनवाई था। इसका सबसे प्रसिद्ध सेनानायक बूटी था इसने थॉट वास थर्ड को सभी युद्धों में सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी बूटी के द्वारा अपनी पत्नी के इमारतों को नष्ट करवाने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाया था अर्थात बूटी ने अपने शासक के कहने के अनुसार अपने शासक के पत्नियों के इमारतों को गिरवा दिया था। इसके बाद ओमेन होरेप प्रशासन बनता ।
➡️ओमेन होरेप =यह जो शासक बना तो किसके शासनकाल मेंं इसके इसके समराज पर हमेशा अस्त-व्यस्त की स्थिति बना रहा। विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति लगी रही क्योंकि इसके समय भ्रष्टाचार बहुुुत बढ़ चुका था पुरोहित मंत्री व्यापारी एवं उच्च वर्ग के लोगों का शक्तिििि बहुत बढ़ चुका था। इस कारण पूरे साम्राज्यय में विकेंद्रीकरण की स्थिति रही। हालांकि इसने अपने साम्राज्य विस्ताार के अधिक कुछ नहीं कर पाया। इसके बाद और दो शासक हुए थॉटमौस-4एवं ओमेन होरेप-2 लेकिन दोनों आयोग होने के कारण अधिक कुछ नहीं कर पाए।
➡️ ओमेन होरेप -3=दो आयोग शासक के बाद जिए शासक बना इससे पहले पूरे साम्राज्य में स्थिति बहुत खराब थी और इसके लिए शासक बनना एक चुनौतीपूर्ण स्थिति कर दिया इसने अपनी शादी अपनी ही बहन टाई से किया था। हालांकि इसकी सगी बहन नहीं थी । लेकिन टाई एक चालाक चतुर एक बुद्धिजीवी महिला थी इसमें शासन पर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप किया। राजकीय दस्तावेजों में रानी का हस्ताक्षर अनिवार्य था हालांकि इसके समय वाणिज्य एवं व्यापार में वृद्धि हुई और दुनिया के सभी व्यापारी एवं राजदूत इस के दरबार में आने लगे थे ओमेन होरेप -3 बहुत बड़ा कलाकार थे और कला के प्रेमी थे इसलिए इसने अपने साम्राज्य में कला एवं संस्कृति का उच्च स्थान दिया और इसका विस्तार भी किया इतिहासकार इसे शानदार की उपाधि भी देते हैं इसके समय कुछ महत्वपूर्ण कार्य साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं हुआ। इसके बाद ओमेन होरेप -4 शासक बना लेकिन इसने भी साम्राज्य के लिए अधिक कुछ नहीं कर पाया और अपने पिता के ही कार्यों पर चला। इसके बाद आखानाटन शासक बनता है
➡️आखानाटन=इसे इतिहासकार मानव इतिहास का सबसे पहला सिद्धांत वादी आदर्शवादी तथा धार्मिक शासक मानते हैं।इसने कभी भी व्यावहारिक राजनीतिक नहीं किया तथा यह अपने सिद्धांत तथा धर्म पर ही चलता रहा और यह एक कट्टर धर्म वादी शासक रहा ।इसके व्यावहारिक राजनीति ना करने के कारण देश विदेश के राजाओं के साथ रिश्ता खराब होता चला गया और इसके राज्य में व्यापारिक स्थिति में काफी कमी आई।धर्म के कट्टरता के कारण इसे मानव इतिहास का पहला धार्मिक कट्टर शासक भी माना जाता है। मिस्र के लोग सर्वश्रेष्ठ देता है एमन को मानते थे। लेकिन यह राजा बनते ही सर्वश्रेष्ठ देवता को बदल दिया और सर्वश्रेष्ठ देवता एटन को घोषित कर दिया। और लोगों को एटन देवता के अनुयाई होने के लिए प्रेरित करने भी लगा एटन सूर्य की डाटा को कहा जाता था जबकि एमन युद्ध के देवता को कहा जाता था! इसने एक नगर बनवाया जिसका नाम अपने ही नाम पर आखानाटन रखा।आखानाटन का अर्थ होता है एटन का प्रिय अथवा सूर्य का प्रिय।
इस नगर को आज ऐला आत्शोमां कहा जाता है।आखानाटन ने अपना नाम सूर्य देवता से प्रेरित होकर रखा था इसका वास्तविक नाम एजाज था।इसने मूर्ति पूजा तथा पुरोहितों का विरोध किया और मूर्ति पूजा कथा पुरोहितों पर प्रतिबंध लगा दिया इसने मूर्ति पूजा के खर्च को अनावश्यक खर्च बताते हुए लोगों को समझाया करता था।इसने पूर्ण रूप से एक ईश्वर बात पर बल दिया और मूर्ति पूजा का विरोध किया इस बात पर पुरोहित वर्ग ने शासक का काफी विरोध किया हालांकि विरोध को इसने दबाने में सफल हुआ। इसलिए मूर्तियों को हटाकर सूर्य का पूजा करने के लिए लोगों को प्रेरित किया । इस ने कहा कि सूर्य की वास्तविक पूजा करना चाहिए सूर्य का कोमल रूप सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय पूजा करने के लिए लोगों को कहा और इसने उन लोगों को समझाया कि सूर्य बहुत ही दयालु एवं जीवन के रक्षक देता है इसके अलावा कोई भी देवता हमारे सामने प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देते हैं इसलिए सूर्य ही महान एवं महत्वपूर्ण देवता है और हमें सूर्य की ही पूजा करनी चाहिए। राजा को राजपुरोहित ने मूर्ति पूजा एवं पुरोहित के सम्मान को पुनः वापस पाने के लिए राजा के सामने अनुग्रह भी किया लेकिन राजा ने इसे अस्वीकार करते हुए ठुकरा दिया यह इतना ज्यादा धार्मिक कट्टरता की धर्म को फैलाने के चक्कर में अपनी वास्तविक राजनीति को भूल चुका था इसी समय एशिया में हिटायर जनजाति के लोगों ने लोहे का प्रयोग करना सीख लिया था और यह जनजाति बहुत ही ज्यादा लड़ाकू एवं आक्रमक प्रवृत्ति के थे इस कारण आखानाटन की समस्या बढ़ती गई एशिया में यह ऐसी जाती थी जिसने सबसे पहले लोहे की खोज कर चुके थे हालांकि हमारे भारत में लोहे का प्रयोग बहुत बाद में 600 ईसा पूर्व होने लगा था। इन जनजातियों ने लोहे का प्रयोग 1300 ईसा पूर्व पूर्व को ही सीख लिया था।
पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग इस के शासनकाल में बहुत ही परेशान हो चुके थे इस कारण से पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग चाहते थे कि इसका शासनकाल जल्द ही समाप्त हो जाए अर्थात नष्ट हो जाए यही सोच को अपने मन में रखते हुए पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग ने हिटायर जनजाति जनजाति से हाथ मिला लिया और अपने धार्मिक विरोधी शासन को खत्म करने का निर्णय लिया। इसके बाद पुरोहित तथा व्यापारिक वर्गों के नेतृत्व में सभी जन जातियों ने मिलकर इस राजा को हराया और हरा करके पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग ने अपना प्रभुत्व वाला राज्य का निर्माण किया। इसके बाद एक पुरोहित राजा बनता है और उस पुरोहित ने अपना नाम भी हिटायर रखा तथा अपना वंश का नाम भी हिटायर ही रखा क्योंकि यह हिटायर जनजाति जनजातियों के कारण ही राजा बना था। कई इतिहासकारों का मानना है कि शिकायत किसी जाति का नाम नहीं था हिटायर पुरोहित एवं व्यापार के द्वारा बनाए गए जनजातियों के संगठन का नाम ही हिटायर था।इसके बाद सत्ता में परिवर्तन होता है और राजा साक्रेन बनता है
➡️ -साक्रेन=यह आखानाटन का पुत्र तथा दामाद था इसने अपने पिता तथा ससुर के धार्मिक नेताओं के विरोध करता था लेकिन इसके अधिकार उचित नहीं होने के कारण कुछ कर नहीं पाता था स्क्रीन के राजा बनती ही इसने सबसे पहले देवताओं के सर्वश्रेष्ठता था पर परिवर्तन किया और एटना देता के स्थान पर पुनः एमन देवता को सर्वश्रेष्ठ नेता घोषित कर दीया। इसने राजधानी भी अपने भाई के कहने पर अखनाटर्न से थीम्स स्थानांतरित कर लिया।लेकिन किस शासक ने भी पुरोहितों एवं व्यापारियों पर कोई विशेष ध्यान नहीं देते हुए उनके अधिकारों की कोई भी उचित समाधान नहीं किया हालांकि व्यापारी एवं पुरोहितों को इस पर न्याय की आशा थी। कुछ दिनों बाद पुनः सत्ता में परिवर्तन होता है और इसका छोटा भाई राजा बनता है जिसका नाम था tutankhagan पुरोहितों को इसका नाम पसंद ना आने के कारण इसका नाम बदल दिया था हालांकि इसका वास्तविक नाम यूजन था। इसके बाद राजा बनता है आई
➡️ सम्राट आई=यह भी 2 टन कटिंग का पुत्र था और दामाद भी था इसने अपनी बहन से शादी किया था जिसका नाम था टी किसके शासनकाल में मिस्र में दो कबीले वालों के बीच में युद्ध हो गया था एक था थीम्स कबीला और दूसरा था हरमहाउ (हिटायर) कबीला। इस युद्ध में रिटायर्ड कभी लाकर जीत होती है और हिप्स का विलय वाले की हार हो जाती है रिटाइट कबीले वाले की जीत के कई कारण है इस कबीले वाले के साथ व्यापार एवं पुरोहित वर्ग थे क्योंकि यह दोनों ही वर्ग शासक से परेशान हो चुके थे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई बार शासक से विनती कर चुके थे लेकिन उनके अनुरोध को किसी भी शासक ने नहीं सुना था और सबसे बड़ी बात इन हर महा कबीले वाले के पास हथियार बहुत ज्यादा थे और लोहे का प्रयोग काफी अधिक मात्रा में कर रहे थे। हर महा कबीले वाले लोग मूर्ति पूजा पर भरोसा करते थे तथा एवं देवता के अनुयाई थे इस कारण पुरोहितों ने से अपने साथ मिलाया और धार्मिक नारा का प्रयोग भी किया जैसे कि मुसलमान भी किसी भी युद्ध में जिहाद कि नारा का प्रयोग करते हैं । इसके बाद एक पुरोहित राजा बना है जिसने अपना नाम हिटायर रख लिया।
➡️ हिटायर यह एक पुरोहित था जो की हिटायर जनजातियों के कारण राजा बना था । इसीलिए अपना नाम हिटायर रख लिया था। तथा अपने राजवंश का नाम भी हिदायत ही रख दिया था।किसके शासनकाल में भी पूर्व राजा के समय रहे सामंत वर्गों ने विरोध करने लगा विरोध की स्थिति को देखते हुए हिदायत ने शाही परिवार के एक लड़की से शादी कर लिया। इसके बाद सामंतों की अधिकारों की रक्षा के लिए इसने उसे उचित अधिकार दिया इसके बाद विद्रोह समाप्त हो गया। इसके बाद पुरोहित तथा व्यापारिक वर्गों ने पुनः मूर्ति पूजा तथा मंदिरों की स्थापना प्रारंभ कर दिया व्यापारिक वर्गों को व्यापार में फिर से अपना अधिकार प्राप्त हो गया। इसके बाद पुरोहितों का भी विरोध पूर्व राजा के शासनकाल में रहे सामान तूने विरोध करना प्रारंभ कर दिया इस विरोध को देखते हुए पुरोहित हिदायत ने पूर्व राजा की राजकुमारी से शादी कर लिया जिसका नाम था टिया। यह सम्राट आई की पुत्री थी। इसके बाद सामंतों को उचित अधिकार मिला और विद्रोह शांत हो गया इसके बाद व्यापार एवं पुरोहितों का अधिकार होने लगा और व्यापारिक क्षेत्रों में काफी वृद्धि होने होने लगी। इसके बाद रिटायर्ड राजा का पुत्र रेमसास प्रथम राजा बनता
➡️ रेमसास प्रथम=इस के समय में कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं हुए ना ही साम्राज्य का विस्तार हुआ ना ही समराज के विस्तार के लिए कोई युद्ध हुआ इसलिए वह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है
➡️ रेमसास द्वितीय=यह वीर लड़ाकू एवं योग राजा था इसके पास साहस हिम्मत तथा थॉटमौस तृतीय के तरह ही सभी गुण थे और इसने अपने साम्राज्य के विस्तार को बढ़ाने के लिए कई लड़ाई लड़ी । इसने हिटायर जाति के राजा मेटला हराया तथा उसे संधि के लिए विवश कर दिया इस संधि में लोहे की मजबूत हथियार तथा कुछ धन के भंडारों की सौदा किया गया इसके बाद दोनों के बीच दोस्ती हो गई। एक दिन रामसेस द्वितीय जब हिदायत जाति के राजा मिथिला के घर जाते हैं तब मिथिला ने अपनी पुत्री की शादी का प्रस्ताव रखता है और रामसेस द्वितीय ने शादी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और शादी के बाद दोनों के बीच में।पवित्र रिश्ता का संबंध हो जाता है इसके बाद दोनों जन जातियों के बीच में संघर्ष खत्म हो जाता है और मित्रता का भाव से रहने लगते हैं इसके बाद राजा बनता है
➡️ रामसेस तृतीय=यह रामसेस द्वितीय का पुत्र था इसने भी अपने पिता की तरह ही अपनी बहन से शादी की थी साम्राज्य विस्तार का ध्यान भी रखा और अपनी सेनाओं को बढ़ाने भी लगा यह अपने पिता से दो कदम आगे ही था वीरता साहस एवं साम्राज्य विस्तार में यह चाहता था कि पूरे यूरोप में मेरा ही शासन हो और इस योजना के साथ इसने सेनाओं की वृद्धि करने में लग गया इसमें स्थानीय लोगों को सेना के लिए प्रेरित किया और सेना की उचित प्रशिक्षण भी दि इसके अलावा स्थानीय लोग अन्य काम भी करते थे लेकिन युद्ध के समय युद्ध के लिए तैयार रहते थे। स्थानीय लोगों के प्रशिक्षण परतथा युद्ध कला पर भरोसा नहीं था और स्थानीय लोग हमेशा युद्ध के लिए तैयार नहीं रहते थे क्योंकि कृषि मजदूरी तथा अन्य काम में भी यह लोग संलग्न रहते था। इस कारण रामसेस तृतीय ने सेनाओं को और अधिक वृद्धि करने के लिए इसने बाहरी लोगों को युद्ध के समय भाड़े पर लाने लगा और युद्ध के बाद इसे नगद धन देकर वापस भेज देता था यह योजना प्रारंभ में सफल रही परंतु इस सभ्यता का पतन का प्रमुख कारण यह योजना भी रहा है क्योंकि भाड़े के सैनिक बाद में गद्दारी करते हैं और राज्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देते हैं हालांकि बाहर से सुरक्षित लगता है प्रारंभ में यह सफल होने के कारण रेन से स्नेह अपने सेनाओं के बल पर आक्रमणकारियों को भगाया तथा इसके स्थानों को नष्ट कर दिया इसके बाद एक-एक करके इसने कई राज को जीता और इसका साम्राज्य सीरिया तक फैल गया सीरिया में मिस्र का सभ्यता का प्रभाव इतना ज्यादा पढ़ा कि वहां के लोग मिस्र सभ्यता के सस्कृति को भी अपनाने लगे इसका प्रमाण मिलता है कि अब सरिया के लोग गिट्टी के तख्ती में लिखना छोड़ कर के पेपरीसा का प्रयोग करने लगे पेपरीसा एक प्रकार का पौधा है। इस प्रकार का पौधा है जिसके छाल का प्रयोग प्राचीन काल में मनुष्य लिखने में करते थे और आज हम इस पेड़ के पौधे के chal एवं पत्तियों से पेपर का निर्माण करते हैं।प्राचीन काल में लोग ताड़ के पत्ते भोजपत्र
के छाल तथा पेपरीसा आदि में लिखा करते थे। रामसेस तृतीय के समय ही मिस्र में तांबा की खोज हो चुकी थी। इसके समय में ही पुरोहित वर्ग का प्रतिष्ठा मान सम्मान बढ़ता गया एवं पुरोहित एवं व्यापारिक वर्गों की समाज में प्रतिष्ठा इतनी बड़ी की अब पुरोहित वर्ग भी समाज में प्रशासन करने लगे। पुरोहित एवं व्यापारियों के शक्ति बढ़ने के कारण यह अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगे समाज में भ्रष्टाचार अत्याचार तथा अन्याय जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगे।धीरे-धीरे पुरोहित व्यापारी एवं उच्च वर्गों की शक्ति इतना ज्यादा बढ़ गया कि यह राजा को कठपुतली राजा बना कर छोड़ दिए पुरोहितों के आज्ञा के बिना शासक भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता था इसमें पुजारियों की ताकत इतनी ज्यादा बढ़ गए थे।किस समय पुजारी वर्ग अगर चाहते तो कभी ने वाले के साथ मिलकर सत्ता परिवर्तन कर सकते थे और अपनी इच्छा के अनुसार शासक बना सकते थे।पुरोहितों में पाखंड का अत्याचार और भ्रष्टाचार का भाव आ चुका था इसके बाद कबीले वाले के बीच में एक ही गृहयुद्ध की स्थिति आ जाती है और शोषित वर्ग यानी निम्न जाति के लोग गिरिजा युद्ध करके अव्यवस्था को फैला देते हैं। इसके बाद आता है नवीन साम्राज्यवाद का कालखंड
🔯साम्राज्यवाद का कालखंड🔯 यह कालखंड मिस्र की सभ्यता का अंतिम कालखंड है यह कालका 27 वें से 30 व राजवंश तक चलता है।इस बीच कई शासक हुए लेकिन राजनीतिक स्थिति को मजबूत नहीं कर पाए और समाज में पुरोहित वर्गों का दबदबा बढ़ता गया जिसके कारण प्रशासनिक कार्यों पर कई प्रकार की मुसीबतें आए और आप मिस्र में प्रशासनिक कार्य पर पुरोहितों का एवं अमीरों का दबदबा बढ़ता गया और राजा कठपुतली बन चुका था जिसके कारण जब 525 ईसा पूर्व में भारत के शासकों ने मिश्र पर आक्रमण किया और उत्तरी नील नदी के घाटी में अधिकार कर लिया इसके बाद मिस्र के राजनीतिक कमजोरियां पूरे विश्व के शासकों को पता चल जाती है उसके बाद मिस्र सभ्यता का बुरे दिन शुरू हो जाता है 525 ईसा पूर्व से 322 ईसा पूर्व तक मिस्र सभ्यता के लोगों ने संघर्ष किया लेकिन फारस के राजाओं को हराने में सफल रहा। इसके बाद धीरे-धीरे पूरे नील नदी घाटी पर भारत के राजाओं का शासन होने लगता है। हालांकि मिस्र के अंतिम शासक यूटोपिया ने मिस्र के बचाने का बहुत प्रयास किया लेकिन इसकी सेनाओं की गद्दारी के कारण इसे हार का सामना करना पड़ा क्योंकि इसकी सेना बाहर से लाई गई भारी की सेना थी जो कि दुश्मनों के साथ मिली हुई थी इस प्रकार मिश्र के राजवंशों की समाप्ति हो जाती है और मिस्र में फारस के राजाओं का शासन स्थापित हो जाता है।
🔯 क्लियोपैट्रा की प्रेम कहानी 🔯
क्लियोपैट्रा मिस्र की बहुत ही खूबसूरत बुद्धिमान चालाक चतुर एवं प्रसिद्ध महारानी हुई है इसके बारे में अभी तक इतिहासकारों को पूरी जानकारी नहीं है लेकिन लेकिन प्रमाणित साक्ष्यों के आधार पर क्लियोपैट्रा की कहानी बड़ी ही अद्भुत लगती है। इतिहासकारों का मानना है कि रानी क्लियोपेट्रा तत्कालीन विश्व की सबसे सुंदर महिला थी यह बड़े-बड़े राजाओं को अपने स्वरूप जाल में फंसा कर काम करवाती थी हालांकि इसके जीवन में तमाम मुश्किलें का समय आया लेकिन इसने मुसीबतों पर कभी हार नहीं मानी थे। रानी क्लियोपेट्रा खूबसूरत ही नहीं बल्कि चालाक चतुर कुशल षड्यंत्रकारी के साथ-साथ कई भाषाओं के विद्वान भी थे।क्लियोपैट्रा को अनेक भाषाओं का ज्ञान था इसके पिता की मृत्यु इसके 14 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। सबसे पहली किलो पेट्रोल अपने भाई से बहुत ज्यादा प्यार करती थी और अपना भाई को ही बचपन से पति मान चुकी थी क्योंकि इसी की तरह इसका भाई भी बहुत खूबसूरत था इसके भाई का नाम टोलमि डिओनिस था ।टोलमि डिओनिस भी रानी क्लियोपेट्रा से प्रेम करता था से प्रेम था। लेकिन जब रानी क्लियोपेट्रा शासक बनी तो इसके भाई एवं पति को अपनी पत्नी की गुलामी पसंद नहीं आने लगा और अपने पत्नी के गुलामी में नहीं रहना चाहता था वह अपनी पत्नी की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहता था इसलिए उसने अपनी पत्नी तथा रानी क्लियोपेट्रा को मारने की योजना बनाया और इस योजना में प्रमुख मंत्री एवं प्रधानमंत्री को भी शामिल कर लिया इसके अलावा कुछ सेनापति भी थे।
एक दिन टोलमि डिओनिस ने घूमने का बहाना बनाकर रानी क्लियोपेट्रा को सीरिया ले जाता है और एक जंगल में ले जाकर सेनापति एवं मंत्रियों के द्वारा मारने की आदेश दे देता है लेकिन यहां पर रानी क्लियोपेट्रा नहीं अपना रूप जाल का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को फसा लेता है और अपनी जान बचा लेती है इसके बाद। मंत्री एवं सेनापतियों ने अपने राजा को झूठी सूचना देकर के संतुष्ट कर लेते हैं इस प्रकार रानी क्लियोपेट्रा बच जाती है लेकिन काफी दिनों तक सीरिया में रहने के बाद। रूम के महान शासक जुलियस सीजर से मुलाकात होती है जुलियस सीजर जब रानी क्लियोपेट्रा को देखते हैं तो उसके रूप में मोहित हो जाते हैं और उसे शादी करने के लिए उत्साहित होते हैं लेकिन रानी क्लियोपेट्रा अपने बदले की आग में जल रहे थे उसने रोम के शासक जुलियस सीजर से प्रस्ताव रखा कि जब तक मेरा बदला पूरा नहीं होता मैं अपने विवाह के बारे में नहीं सोच सकती तभी जुलियस सीजर ने भरोसा दिलाया कि तुम्हारा बदला मैं जरूर लूंगा। इसके बाद रानी क्लियोपेट्रा और जुलियस सीजर दोनों की शादी हो जाती है। और फिर मिस्र के राजा टोलमी को हराकर मिश्र पर भी अधिकार कर लेता है और मिश्री का शासक जुलियस सीजर ने रानी क्लियोपेट्रा को घोषित कर दिया और दोनों मिलकर मिश्र और रोम के शासन को चलाते हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद जुलियस सीजर की हत्या हो जाती है और रोम रूम की राजनीति में 5 वर्षों तक बहुत ही ज्यादा संघर्ष चलता है इसी बीच रूम के मंत्री वर्ग यह चाहते थे कि रानी क्लियोपेट्रा को मार दिया जाए इस बात का भनक रानी क्लियोपैट्रा को चल जाता है तभी रानी क्लियोपेट्रा ने रोम के प्रमुख सेनापति तथा महाराजा जुलियस सीजर के सबसे ताकतवर एवं महत्वपूर्ण सेनापति एंटोनी को फंसा लेती है। लेकिन रूम के सामंत इस प्रेम कहानी को समाप्त करना। तभी रूम के मंत्री वर्गों ने एक योजना बनाई इस योजना के तहत रानी क्लियोपेट्रा को सेनापति एंटोनी से दूर ले जाना था और वहां ले जाकर रानी क्लियोपेट्रा को मार देने की योजना थी लेकिन रानी क्लियोपेट्रा को मंत्री नहीं मार पाते हैं रानी के लिए कट रहा है किसी तरह बच जाती है लेकिन मंत्रियों ने एक झूठी अफवाह उड़ा दिया कि रानी क्लियोपेट्रा एक युद्ध में मारे गए। इस घटना को सुनकर महान सेनापति एंटोनी अपने आप को रोक नहीं पाया और आत्महत्या कर लेता है। इसके बाद सभी मंत्रियों ने मिलकर रोम का राजा ऑक्टेवियन को बनाते हैं और यह भी बुद्धिमान चलाक और चतुर शासक था इसके बाद मंत्रियों ने सोचा कि क्लियोपैट्रा को मारना बहुत जरूरी है। जब मंत्रियों ने क्लियोपैट्रा को मारने के लिए जाल बिछाया तो क्लियोपैट्रा ने सोचा कि रूम के राजा ऑक्टेवियन को ही फंसा लिया जाए वरना मंत्री हमें मार देंगे तभी फिर से रानी क्लियोपेट्रा नहीं अपना रूप जाल की खेल खेलती है लेकिन इस बार शासक फसने वाला नहीं था शासक ने मंत्रियों की सलाह मानकर रानी क्लियोपेट्रा की बातों पर ही चलता है और रानी क्लियोपेट्रा के अनुसार उसके जाल में फंस जाता है लेकिन यह रूम के शासक की एक चाल थी जो की रानी क्लियोपेट्रा नहीं समझ पाती है इसके बाद रानी क्लियोपेट्रा को जहर खिलाकर मार दिया जाता है।इस प्रकार रानी क्लियोपेट्रा की संघर्षपूर्ण जीवन समाप्त हो जाता है हालांकि अपने जीवन में महारानी क्लियोपेट्रा में जो भी किया है परंतु एक सच्चे देशभक्त की तरह से अपने मित्र साम्राज्य पर आज तक आने नहीं दिया और अपने दुश्मनों से बचते रहे।हालांकि अंत में दुश्मनों ने ही इन्हें मार दिया इतिहास कारों का कहना है कि रानी क्लियोपेट्रा को जहर खिलाकर मारा गया था।
1 विश्व में सबसे पहले राजा को देता मानने वाला सभ्यता मिस्र सभ्यता थी यहां पर राजा को ईश्वर तथा उसके नौकर को ईश्वर का दास की संज्ञा दी जाती है।
2 देवत्व की इसी भावना के कारण राजकुमार अपने ही कुल तथा परिवार में विवाह करते थे। जिससे रक्त की शुद्धता तथा संपत्ति पर अधिकार एक ही परिवार पर होता था।
3 मिस्र में संपत्ति पर अधिकार स्त्रियों को मिलता था और स्त्रियों के द्वारा संपत्ति पर अधिकार अन्य लोगों को मिलता था जैसे आज हमारे भारत में संपत्ति पर अधिकार पुत्र का होता है और पुत्र से संपत्ति पर अधिकार उनके पत्नी तथा बेटे आदि अन्य लोगों को मिलता है।इस कारण से राजकुमार तथा धनी परिवार के लोग अपने पुत्र की शादी अपने ही पुत्री से कराते थे ताकि संपत्ति पर अधिकार तथा रक्त की शुद्धता बचा रहे।
4 मिस्र पर विदेशी आक्रमणकारियों के कारण राजा वह के देवता की भावना नष्ट हो जाती है तथा सूडान में सोना की खान मिलने के कारण मिस्र सभ्यता में अराजकता फैल जाता है और भाड़े के सैनिकों गद्दारी करने लगते हैं और इस कारण से मिस्र सभ्यता की अस्तित्व खत्म हो जाता है और मिस्र के सभी मान्यताएं समाप्त हो जाती है
5 ईरान और लीबिया से भाड़े के सैनिक भर्ती किया जाता था और इन सेनाओं ने ही सत्ता को पलटने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी क्योंकि इन सेनाओं ने गद्दारी की जिसके कारण मिस्र का राजा कमजोर पड़ गया था
6 संसार के किसी भी सभ्यता में मरने के बाद भी जीवन पर इतना विश्वास नहीं करते थे जितना मिश्र वासी करते थे यह लोग मानते थे कि यह शरीर कभी ना कभी जरूर जीवित होगा तथा मरने के बाद भी शरीर के द्वारा सुख भोग किया जाता है ऐसी मान्यता मिश्र वासियों की थी इसलिए राजाओं को मरने के बाद इसके शरीर पर विशेष प्रकार का लेप लगाकर मम्मी के रूप में सुरक्षित रखा जाता था और उसके ऊपर विशाल पिरामिड बनाया जाता था।
7 मिश्र वासी का धर्म बहू देव आदि था जिसमें देवताओं मनुष्य जानवरों आदि की पूजा की जाती थी हालांकि मिस्र के कुछ शासक ऐसे भी हुए जिसने एकेश्वरवाद का प्रचार प्रसार किया तथा एक ईश्वर बाद पर विश्वास करने के लिए जनता को प्रेरित किया।
8 मिस्र वासी नील नदी की पूजा और औरीशस नाम से करते थे मिश्र वासी नील नदी को हमपी नाम से भी जानते थे। नील नदी का हंपी नाम सामान्य जनता में प्रचलित था।
9 मिश्रा वासियों का मानना था कि औरीशस का विवाह अपनी बहन से हुआ है तथा इन दोनों का पुत्र होरेस है। इसीलिए नील नदी के आदर्श मानकर मिश्र वासी भी भाई बहन में ही शादी करते थे।
10 मिश्र वासी आत्मा की अमरता पर विश्वास रखते थे तथा पुनर्जन्म पर भी इन्हें विश्वास था।
11 मिस्र वासियों का समाज तीन वर्गो में विभाजित था।
(A) उच्च वर्ग =इस वर्ग में पादरी पुरोहित एवं शासक के परिवार लोग आते थे।
(B) मध्यमवर्ग=इस वर्ग में व्यापारी एवं राजा के नौकर वर्ग आते थे।
(C निम्न वर्ग=इस वर्ग में किसान मजदूर तथा दास वर्ग आते थे
12 मिस्र में महिलाओं को सबसे ऊंचा स्थान एवं सबसे अधिक स्वतंत्रता प्राप्त था हम कर सकते हैं कि वैसी स्वतंत्रता आधुनिक युग में भी नहीं प्राप्त है
13 मिस्र का प्रमुख पैसा कृषि था हालांकि यह लोग ऊंट के बारे में परिचित नहीं थे।
14 दुनिया के इतिहास लेखन का श्रेय मिश्र वासी को जाता है। कहा जाता है कि इतिहास लिखने की परंपरा मिश्र वासियों ने शुरू किया।
15 मस्तवा=मिस्र वासियों के सामान्य लोग तथा समानता की समाधि यों को मस्तबा कहा जाता था यह समाधि पर बड़े-बड़े पत्थरों के होते थे और यह समाधि आयताकार होती होती थी।
NOTE=आज आपकी मिस्र सभ्यता की पूरी कहानी समाप्त होती है अगर यह ब्लॉग आप लोगों को अच्छा लगे तो अपने साथियों में जरुर शेयर करें क्योंकि इस ब्लॉग को लिखने में काफी मेहनत लगी है और अगर आप सहयोग करें तो ऐसी ही ब्लॉक हम बनाते रहेंगे धन्यवाद।
Nice
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