⚛️नील नदी घाटी सभ्यता के साम्राज्यवादी कालखंड⚛️

 ✡️ साम्राज्यवादी कालखंड 1800 से 1090 BC तक✡️ 
इससे पहले हमने देखा कि मिस्र में सामंतवादी युग का कालखंड चल रहा था तो मिस्र के लोग अपनी प्रशासन व्यवस्था को चलाने के लिए सामंतों का सहयोग ले रहे थे अभी तक इन लोगों के मन में साम्राज्य विस्तार की कोई भी नीति नहीं आई थी लेकिन अब मिश्र वासियों तथा अन्य देशों के राजाओं ने साम्राज्य के विस्तार के लिए करके एक राजनीतिक विचार आता है और इसके बाद लोगों के मन में स्थानों जमीन जायदाद आदि को लेकर के एक विशेष स्थान प्राप्त हो जाता है इसी को साम्राज्यवादी  कालखंड करते हैं।
1580 मे अलमास प्रथम ने सेमैट्रिक जनजाति के लोगों को सत्ता से हटा दिया तथा हम कह सकते हैं कि हाइकस वंश का नष्ट कर दिया है।इसके बाद पूरी मिश्र नदी घाटी सभ्यता पर फिर से मिश्र वासियों का अधिकार हो गया और सिमेट्रीक  जनजाति के लोग यहां से प्रस्थान कर जाते हैं अलमास प्रथम ने सीरिया तथा फिलिस्तीन को भी जीता और अपने साम्राज्य में मिला लिया। अलमास  प्रथम मिश्रा राजवंश के 18 शासक था। इसके बाद मिस्र वासियों का शासन किया सीरिया एवं फिलिस्तीन  में 1580 से 1350 BC तक शासन चलता है इसके बाद यहां पर स्थानीय जनजातियों के द्वारा विद्रोह कर दिया जाता है फिर मिस्र की सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा श्री अवस्थी ने पुनः स्थानीय जनजाति का शासन हो जाता है।अलमास प्रथम ने अपना शासन का विस्तार किया तथा सुशासन को व्यवस्थित किया इस कारण मिश्र ने साम्राज्यवादी युग का जनक ऑलमोस प्रथम को कहा जाता है।

➡️ -19 एवं 20 व राजवंशी सत्ता 1350 से 1150 तक रखा है लेकिन कोई विशेष घटना नहीं घटती है लेकिन इस समय मिस्र से सीरिया तथा filisteen चला जाता है हालांकि मिस्र कोई भी आक्रमण नहीं होता है।21 व राजवंश के समय विदेशी आक्रमण होता है और आक्रमणकारी होते हैं असीरियन सभ्यता के लोग तथा सीरिया के राजवंश के लोग।इन आक्रमणकारियों के कारण मिश्र की कुछ हिस्सा चीन जाती है और पून: मिश्रा के उत्तरी हिस्से पर विदेशी आक्रमणकारियों का अधिकार हो जाता है! इस कारण एक ही 21 राजवंश का पतन का काल कहते। 22 एवं 24 वें राजवंश का समय 945 -712 BC तक चलता है और इस युग को लिवइन्न का युग कहा जाता है क्योंकि इस समय श्रिया तथा असीरियन लोगों का एक मजबूत संगठन बन चुका था जिसने मिश्र पर आक्रमण किया और फिर  मिस्र की बहुत बड़ी भूमि पर अधिकार जता लिया।इस प्रकार 25 राज्य वंश के समय नील नदी घाटी के उत्तरी भाग में असीरियन सभ्यता का शासन हो गया।

➡️ -इसके बाद 26 व राजवंश आता है जो कि 662 से 525 साल पूर्व तक चलता है इसे पुनः स्थापना का युग कहा जाता है क्योंकि इसने फिर से असीरियन लोगों को पराजित कर वहां पर मिस्र की सभ्यता का आरंभ किया इस प्रकार पुनः फिर से पूरी नील नदी घाटी पर मिस्र सभ्यता का शासन हो गया! इसके बाद मिस्र में नवीन साम्राज्यवाद कालखंड को फारस शासकों ने धीरे-धीरे आक्रमणकारियों के द्वारा समाप्त कर देता है और मिश्र पर कब्जा करने लगता है। इस समय भारत के शासक तथा मिस्र के शासकों के बीच में काफी लंबी संघर्ष की समय सीमा होती है। अंत में पूरी नील नदी सभ्यता पर फारस के शासकों का शासन हो जाता है और यह समय होता है 322 ईसा पूर्व। इसके बाद मिस्र की शासन एवं सभ्यता समाप्त हो जाती है और पूरी नील नदी घाटी पर फारस के राजाओं का शासन पूरे मिस्र सभ्यता पर हो जाता है। 
NOTE:-अब हमें 21वें एवं 26 वें राजवंश के बारे में विस्तार से पढ़ना है तथा इसके विशेष एवं महत्वपूर्ण राजाओं के बारे में जानना है।
हम पहले ही पढ़ चुके हैं कि विश्व राजवंश तक सीरिया तथा फिलिस्तीन का मिश्र के कुछ भागों पर अधिकार हो चुका था।इसके बाद एक किस राज्य वंश के राजाओं ने उन्हें अपना अधिकार स्थापित करके इन सभी विदेशी शासकों को भगा देते हैं।किस राजवंश का सबसे महत्वपूर्ण एवं वीर शासक एवं योग एवं महत्वपूर्ण शासक तथा उनकी क्या भूमिका रही इनके बारे में हमें अच्छी तरह से जानना 
➡️  थॉटमौस प्रथम= यह मिस्र के 21 वे राजवंश शासक था। इसने अपने शासनकाल में खुद को दफनाने का स्थान निश्चित कर लिया था इसने अपने सेनाओं को प्रशिक्षित किया तथा युद्ध सामग्री की व्यवस्था किया लेकिन अपने साम्राज्य विस्तार में अधिक योगदान नहीं दे पाया और इनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई लेकिन यदि जीवित रहता तो साम्राज्य का विस्तार करता इसकी गतिविधियों से ऐसा प्रतीत होता था।
#:-हितोसेसूट=यह थॉटमौस प्रथम की पुत्री थी जो कि मिस्र की प्रथम महिला शासिका बनी तथा दुनिया की प्रथम महिला शासिका भी रही। इसके समय काल को मिश्रिख का स्वर्ण काल कहा जाता है इसे मिश्र के साम्राज्य विस्तार पर ध्यान नहीं दिया। और इसने तो युद्ध के बारे में कभी सोचा ही नहीं। लेकिन इस के शासनकाल में व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में बहुत ज्यादा वृद्धि हुआ और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया। थॉटमौस प्रथम की दो पुत्र एवं एक पुत्री थी जिसका  नाम रखा गया था। पुत्री का नाम हितोसेसूट रखा था जो कि विश्व में प्रसिद्ध हुई एक महिला शासक के नाम से। तथा इसके प्रथम पुत्र का नाम थॉटमौस दितीय था यह एक आयोग पुत्र था। एवं दूसरे पुत्र का नाम थॉटमौस तृतीय था। यह एक योग्य वीर एवं साहसी पुत्र था। इस कारण ही हितोसेसूट अपनी शादी इसी से किया।
➡️ थॉटमौस तृतीय=इसने अपनी बहन हितोसेसूट से शादी की थी । यह वीर एवं योग शासक था। इसके समय मिश्र असम राज्य की सीमा सबसे बड़ी थी। इसने अपना विशाल साम्राज्य निर्माण के लिए युद्ध आरंभ किया और विशाल साम्राज्य का निर्माण भी  करता है। इसके समराज इतना विशाल था कि इसने अपने साम्राज्य को प्रशासन की सुविधा के लिए 55 प्रांतों में बांटा और वहां पर शासन के लिए गवर्नर नियुक्त किएइतिहास का थॉटमौस तृतीय  को मिस्र का नेपोलियन कहते हैं क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा था इसको विश्व इतिहास का प्रथम विजेता सेनानायक तथा प्रथम समराज निर्माण करता की उपाधि भी दिया जाता है।इसने अपने विशाल साम्राज्य को नियंत्रण करने के लिए दो प्रधानमंत्री तथा दो मंत्री मंडल का निर्माण भी कराया लेकिन दोनों मंत्रिमंडल को नियंत्रण इसकी पत्नी तथा बहन करती थी और यह युद्ध में व्यस्त रहता था कभी भी अपने मंत्रिमंडल पर अधिक टाइम नहीं दे पाता था इसलिए मंत्रिमंडल की देखरेख इसकी पति नहीं करती थी।
इसने एशियाई परदेस पर 17 बार आक्रमण किया था इसके प्रधानमंत्री रमेमीर इसे ईश्वर की उपाधि तथा ईश्वर मानता था।यह मंत्री कहता था कि हमारे शासक को सब कुछ मालूम है इसको सब के बारे में पता रहता है यह ज्ञान की देता है इस मंत्री के अनुसार थॉटमौस तृतीय   सभी कार्यों को कर सकता है।थॉटमौस तृतीय  ने जीते हुए क्षेत्रों के राजपूतों को लूटा लेकिन जनता को कष्ट नहीं दिया हालांकि विजिट क्षेत्रों को अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया और वहां के शासकों से धन वार्षिक के रूप में लिए। इसलिए मिस्र  तत्कालीन दुनिया का सबसे समृद्ध साम्राज्य बन गया थॉटमौस तृतीय  स्वभाव से हम निरंकुश उधार एवं सुव्यवस्थित शासक मान सकते हैं जब उसकी पत्नी शासिका थी तब इसको बिल्कुल महत्व नहीं दिया था इस कारण अपनी पत्नी द्वारा बनाए गए सभी इमारतों को नष्ट करके फिर से इसी जगह नए भवन बनवाई था। इसका सबसे प्रसिद्ध सेनानायक बूटी था इसने थॉट वास थर्ड को सभी युद्धों में सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी बूटी के द्वारा अपनी पत्नी के इमारतों को नष्ट करवाने में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाया था अर्थात बूटी ने अपने शासक के कहने के अनुसार अपने शासक के पत्नियों के इमारतों को गिरवा दिया था। इसके बाद ओमेन होरेप प्रशासन बनता ।
➡️ओमेन होरेप =यह जो शासक बना तो किसके शासनकाल मेंं  इसके इसके समराज पर हमेशा अस्त-व्यस्त की स्थिति बना रहा। विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति लगी रही क्योंकि इसके समय भ्रष्टाचार बहुुुत बढ़ चुका था पुरोहित मंत्री व्यापारी एवं उच्च वर्ग के लोगों का शक्तिििि बहुत बढ़ चुका था। इस कारण पूरे साम्राज्यय में विकेंद्रीकरण की स्थिति रही। हालांकि इसने अपने साम्राज्य विस्ताार के अधिक कुछ नहीं कर पाया। इसके बाद और दो शासक हुए थॉटमौस-4एवं ओमेन होरेप-2 लेकिन दोनों आयोग होने के कारण अधिक कुछ नहीं कर पाए।
➡️ ओमेन होरेप -3=दो आयोग शासक के बाद जिए शासक बना इससे पहले पूरे साम्राज्य में स्थिति बहुत खराब थी और इसके लिए शासक बनना एक चुनौतीपूर्ण स्थिति कर दिया इसने अपनी शादी अपनी ही बहन टाई से किया था। हालांकि इसकी सगी बहन नहीं थी । लेकिन टाई एक चालाक चतुर एक बुद्धिजीवी महिला थी इसमें शासन पर बहुत ज्यादा हस्तक्षेप किया। राजकीय दस्तावेजों में रानी का हस्ताक्षर अनिवार्य था हालांकि इसके समय वाणिज्य एवं व्यापार में वृद्धि हुई और दुनिया के सभी व्यापारी एवं राजदूत इस के दरबार में आने लगे थे ओमेन होरेप -3 बहुत बड़ा कलाकार थे और कला के प्रेमी थे इसलिए इसने अपने साम्राज्य में कला एवं संस्कृति का उच्च स्थान दिया और इसका विस्तार भी किया इतिहासकार इसे शानदार की उपाधि भी देते हैं इसके समय कुछ महत्वपूर्ण कार्य साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं हुआ। इसके बाद ओमेन होरेप -4 शासक बना लेकिन इसने भी साम्राज्य के लिए अधिक कुछ नहीं कर पाया और अपने पिता के ही कार्यों पर चला। इसके बाद     आखानाटन शासक बनता है
➡️आखानाटन=इसे इतिहासकार मानव इतिहास का सबसे पहला सिद्धांत वादी आदर्शवादी तथा धार्मिक शासक मानते हैं।इसने कभी भी व्यावहारिक राजनीतिक नहीं किया तथा यह अपने सिद्धांत तथा धर्म पर ही चलता रहा और यह एक कट्टर धर्म वादी शासक रहा ।इसके व्यावहारिक राजनीति ना करने के कारण देश विदेश के राजाओं के साथ रिश्ता खराब होता चला गया और इसके राज्य में व्यापारिक स्थिति में काफी कमी आई।धर्म के कट्टरता के कारण इसे मानव इतिहास का पहला धार्मिक कट्टर शासक भी माना जाता है। मिस्र के लोग सर्वश्रेष्ठ देता है एमन को मानते थे। लेकिन यह राजा बनते ही सर्वश्रेष्ठ देवता को बदल दिया और सर्वश्रेष्ठ देवता एटन  को घोषित कर दिया। और लोगों को एटन देवता के अनुयाई होने के लिए प्रेरित करने भी लगा एटन सूर्य की डाटा को कहा जाता था जबकि  एमन युद्ध के देवता को कहा जाता था! इसने एक नगर बनवाया जिसका नाम अपने ही नाम पर आखानाटन रखा।आखानाटन का अर्थ होता है एटन का प्रिय अथवा सूर्य का प्रिय।
इस नगर को आज ऐला आत्शोमां कहा जाता है।आखानाटन ने अपना नाम सूर्य देवता से प्रेरित होकर रखा था इसका वास्तविक नाम एजाज था।इसने मूर्ति पूजा तथा पुरोहितों का विरोध किया और मूर्ति पूजा कथा पुरोहितों पर प्रतिबंध लगा दिया इसने मूर्ति पूजा के खर्च को अनावश्यक खर्च बताते हुए लोगों को समझाया करता था।इसने पूर्ण रूप से एक ईश्वर बात पर बल दिया और मूर्ति पूजा का विरोध किया इस बात पर पुरोहित वर्ग ने  शासक का काफी विरोध किया हालांकि विरोध को इसने दबाने में सफल हुआ। इसलिए मूर्तियों को हटाकर सूर्य का पूजा करने के लिए लोगों को प्रेरित किया । इस ने कहा कि सूर्य की वास्तविक पूजा करना चाहिए सूर्य का कोमल रूप सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय पूजा करने के लिए लोगों को कहा और इसने उन लोगों को समझाया कि सूर्य बहुत ही दयालु एवं जीवन के रक्षक देता है इसके अलावा कोई भी देवता हमारे सामने प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देते हैं इसलिए सूर्य ही महान एवं महत्वपूर्ण देवता है और हमें सूर्य की ही पूजा करनी चाहिए। राजा को राजपुरोहित ने मूर्ति पूजा एवं पुरोहित के सम्मान को पुनः वापस पाने के लिए राजा के सामने अनुग्रह भी किया लेकिन राजा ने इसे अस्वीकार करते हुए ठुकरा दिया यह इतना ज्यादा धार्मिक कट्टरता की धर्म को फैलाने के चक्कर में अपनी वास्तविक राजनीति को भूल चुका था इसी समय एशिया में हिटायर  जनजाति के लोगों ने लोहे का प्रयोग करना सीख लिया था और यह जनजाति बहुत ही ज्यादा लड़ाकू एवं आक्रमक प्रवृत्ति के थे इस कारण आखानाटन  की समस्या बढ़ती गई एशिया में यह ऐसी जाती थी जिसने सबसे पहले लोहे की खोज कर चुके थे हालांकि हमारे भारत में लोहे का प्रयोग बहुत बाद में 600 ईसा पूर्व होने लगा था। इन जनजातियों ने लोहे का प्रयोग 1300 ईसा पूर्व पूर्व को ही सीख लिया था।


पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग इस के शासनकाल में बहुत ही परेशान हो चुके थे इस कारण से पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग चाहते थे कि इसका शासनकाल जल्द ही समाप्त हो जाए अर्थात नष्ट हो जाए यही सोच को अपने मन में रखते हुए पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग ने हिटायर  जनजाति  जनजाति से हाथ मिला लिया और अपने धार्मिक विरोधी शासन को खत्म करने का निर्णय लिया। इसके बाद पुरोहित तथा व्यापारिक वर्गों के नेतृत्व में सभी जन जातियों ने मिलकर इस राजा को हराया और हरा करके पुरोहित एवं व्यापारिक वर्ग ने अपना प्रभुत्व वाला राज्य का निर्माण किया। इसके बाद एक पुरोहित राजा बनता है और उस पुरोहित ने अपना नाम भी हिटायर रखा तथा अपना वंश का नाम भी हिटायर  ही रखा क्योंकि यह हिटायर  जनजाति जनजातियों के कारण ही राजा बना था। कई इतिहासकारों का मानना है कि शिकायत किसी जाति का नाम नहीं था हिटायर  पुरोहित एवं व्यापार के द्वारा बनाए गए जनजातियों के संगठन का नाम ही हिटायर  था।इसके बाद सत्ता में परिवर्तन होता है और राजा साक्रेन बनता है
 
➡️ -साक्रेन=यह आखानाटन का पुत्र तथा दामाद था इसने अपने पिता तथा ससुर के धार्मिक नेताओं के विरोध करता था लेकिन इसके अधिकार उचित नहीं होने के कारण कुछ कर नहीं पाता था स्क्रीन के राजा बनती ही इसने सबसे पहले देवताओं के सर्वश्रेष्ठता था पर परिवर्तन किया और एटना  देता के स्थान पर पुनः एमन देवता को सर्वश्रेष्ठ नेता घोषित कर दीया। इसने राजधानी भी अपने भाई के कहने पर अखनाटर्न से थीम्स स्थानांतरित कर लिया।लेकिन किस शासक ने भी पुरोहितों एवं व्यापारियों पर कोई विशेष ध्यान नहीं देते हुए उनके अधिकारों की कोई भी उचित समाधान नहीं किया हालांकि व्यापारी एवं पुरोहितों को इस पर न्याय की आशा थी। कुछ दिनों बाद पुनः सत्ता में परिवर्तन होता है और इसका छोटा भाई राजा बनता है जिसका नाम था tutankhagan पुरोहितों को इसका नाम पसंद ना आने के कारण इसका नाम बदल दिया था हालांकि इसका वास्तविक नाम यूजन था। इसके बाद राजा बनता है आई


➡️ सम्राट आई=यह भी 2 टन कटिंग का पुत्र था और दामाद भी था इसने अपनी बहन से शादी किया था जिसका नाम था टी किसके शासनकाल में मिस्र में दो कबीले वालों के बीच में युद्ध हो गया था एक था थीम्स कबीला और दूसरा था हरमहाउ        (हिटायर) कबीला। इस युद्ध में रिटायर्ड कभी लाकर जीत होती है और हिप्स का विलय वाले की हार हो जाती है रिटाइट कबीले वाले की जीत के कई कारण है इस कबीले वाले के साथ व्यापार एवं पुरोहित वर्ग थे क्योंकि यह दोनों ही वर्ग शासक से परेशान हो चुके थे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए कई बार शासक से विनती कर चुके थे लेकिन उनके अनुरोध को किसी भी शासक ने नहीं सुना था और सबसे बड़ी बात इन हर महा कबीले वाले के पास हथियार बहुत ज्यादा थे और लोहे का प्रयोग काफी अधिक मात्रा में कर रहे थे। हर महा कबीले वाले लोग मूर्ति पूजा पर भरोसा करते थे तथा एवं देवता के अनुयाई थे इस कारण पुरोहितों ने से अपने साथ मिलाया और धार्मिक नारा का प्रयोग भी किया जैसे कि मुसलमान भी किसी भी युद्ध में जिहाद कि नारा का प्रयोग करते हैं । इसके बाद एक पुरोहित राजा बना है जिसने अपना नाम हिटायर रख लिया।

➡️ हिटायर यह एक पुरोहित था जो की हिटायर  जनजातियों के कारण राजा बना था । इसीलिए अपना नाम हिटायर  रख लिया था। तथा अपने राजवंश का नाम भी हिदायत ही रख दिया था।किसके शासनकाल में भी पूर्व राजा के समय रहे सामंत वर्गों ने विरोध करने लगा विरोध की स्थिति को देखते हुए हिदायत ने शाही परिवार के एक लड़की से शादी कर लिया। इसके बाद सामंतों की अधिकारों की रक्षा के लिए इसने उसे उचित अधिकार दिया इसके बाद विद्रोह समाप्त हो गया। इसके बाद पुरोहित तथा व्यापारिक वर्गों ने पुनः मूर्ति पूजा तथा मंदिरों की स्थापना प्रारंभ कर दिया व्यापारिक वर्गों को व्यापार में  फिर से अपना अधिकार प्राप्त हो गया। इसके बाद पुरोहितों का भी विरोध  पूर्व राजा के शासनकाल में रहे सामान तूने विरोध करना प्रारंभ कर दिया इस विरोध को देखते हुए पुरोहित हिदायत ने पूर्व राजा की राजकुमारी से शादी कर लिया जिसका नाम था  टिया। यह सम्राट आई की पुत्री थी। इसके बाद सामंतों को उचित अधिकार मिला और विद्रोह शांत हो गया इसके बाद व्यापार एवं पुरोहितों का अधिकार होने लगा और व्यापारिक क्षेत्रों में काफी वृद्धि होने होने लगी। इसके बाद रिटायर्ड राजा का पुत्र रेमसास प्रथम राजा बनता

➡️ रेमसास प्रथम=इस के समय में कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं हुए ना ही साम्राज्य का विस्तार हुआ ना ही समराज के विस्तार के लिए कोई युद्ध हुआ इसलिए वह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है
➡️ रेमसास  द्वितीय=यह वीर लड़ाकू एवं योग राजा था इसके पास साहस हिम्मत तथा थॉटमौस तृतीय के तरह ही सभी गुण थे और इसने अपने साम्राज्य के विस्तार को बढ़ाने के लिए कई लड़ाई लड़ी । इसने हिटायर जाति के राजा मेटला  हराया तथा उसे संधि के लिए विवश कर दिया इस संधि में लोहे की मजबूत हथियार तथा कुछ धन के भंडारों की सौदा किया गया इसके बाद दोनों के बीच दोस्ती हो गई। एक दिन रामसेस द्वितीय जब हिदायत जाति के राजा मिथिला  के घर जाते हैं तब मिथिला ने अपनी पुत्री की शादी का प्रस्ताव रखता है और रामसेस द्वितीय ने शादी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और शादी के बाद दोनों के बीच में।पवित्र रिश्ता का संबंध हो जाता है इसके बाद दोनों जन जातियों के बीच में संघर्ष खत्म हो जाता है और मित्रता का भाव से रहने लगते हैं इसके बाद राजा बनता है 


➡️ रामसेस तृतीय=यह रामसेस द्वितीय का पुत्र था इसने भी अपने पिता की तरह ही अपनी बहन से शादी की थी साम्राज्य विस्तार का ध्यान भी रखा और अपनी सेनाओं को बढ़ाने भी लगा यह अपने पिता से दो कदम आगे ही था वीरता साहस एवं साम्राज्य विस्तार में यह चाहता था कि पूरे यूरोप में मेरा ही शासन हो और इस योजना के साथ इसने सेनाओं की वृद्धि करने में लग गया इसमें स्थानीय लोगों को सेना के लिए प्रेरित किया और सेना की उचित प्रशिक्षण भी दि इसके अलावा स्थानीय लोग अन्य काम भी करते थे लेकिन युद्ध के समय युद्ध के लिए तैयार रहते थे। स्थानीय लोगों के प्रशिक्षण परतथा युद्ध कला पर भरोसा नहीं था और स्थानीय लोग हमेशा युद्ध के लिए तैयार नहीं रहते थे क्योंकि कृषि मजदूरी तथा अन्य काम में भी यह लोग संलग्न रहते था। इस कारण रामसेस तृतीय ने सेनाओं को और अधिक वृद्धि करने के लिए इसने बाहरी लोगों को युद्ध के समय भाड़े पर लाने लगा और युद्ध के बाद इसे नगद धन देकर वापस भेज देता था यह योजना प्रारंभ में सफल रही परंतु इस सभ्यता का पतन का प्रमुख कारण यह योजना भी रहा है क्योंकि भाड़े के सैनिक बाद में गद्दारी करते हैं और राज्य को अंदर ही अंदर खोखला कर देते हैं हालांकि बाहर से सुरक्षित लगता है प्रारंभ में यह सफल होने के कारण रेन से स्नेह अपने सेनाओं के बल पर आक्रमणकारियों को भगाया तथा इसके स्थानों को नष्ट कर दिया इसके बाद एक-एक करके इसने कई राज को जीता और इसका साम्राज्य सीरिया तक फैल गया सीरिया में मिस्र का  सभ्यता का प्रभाव इतना ज्यादा पढ़ा कि वहां के लोग मिस्र सभ्यता के सस्कृति को भी अपनाने लगे इसका प्रमाण मिलता है कि अब सरिया के लोग गिट्टी के तख्ती में लिखना छोड़ कर के पेपरीसा का प्रयोग करने लगे पेपरीसा एक प्रकार का पौधा है। इस प्रकार का पौधा है जिसके छाल का प्रयोग प्राचीन काल में मनुष्य लिखने में करते थे और आज हम इस पेड़ के पौधे के chal एवं पत्तियों से पेपर का निर्माण करते हैं।प्राचीन काल में लोग ताड़ के पत्ते भोजपत्र 
के छाल तथा पेपरीसा आदि में लिखा करते थे। रामसेस तृतीय के समय ही मिस्र में तांबा की खोज हो चुकी थी। इसके समय में ही पुरोहित वर्ग का प्रतिष्ठा मान सम्मान बढ़ता गया एवं पुरोहित एवं व्यापारिक वर्गों की समाज में प्रतिष्ठा इतनी बड़ी की अब पुरोहित वर्ग भी समाज में प्रशासन करने लगे। पुरोहित एवं व्यापारियों के शक्ति बढ़ने के कारण यह अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगे समाज में भ्रष्टाचार अत्याचार तथा अन्याय जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगे।धीरे-धीरे पुरोहित व्यापारी एवं उच्च वर्गों की शक्ति इतना ज्यादा बढ़ गया कि यह राजा को कठपुतली राजा बना कर छोड़ दिए पुरोहितों के आज्ञा के बिना शासक भी मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता था इसमें पुजारियों की ताकत इतनी ज्यादा बढ़ गए थे।किस समय पुजारी वर्ग अगर चाहते तो कभी ने वाले के साथ मिलकर सत्ता परिवर्तन कर सकते थे और अपनी इच्छा के अनुसार शासक बना सकते थे।पुरोहितों में पाखंड का अत्याचार और भ्रष्टाचार का भाव आ चुका था इसके बाद कबीले वाले के बीच में एक ही गृहयुद्ध की स्थिति आ जाती है और शोषित वर्ग यानी निम्न जाति के लोग गिरिजा युद्ध करके अव्यवस्था को फैला देते हैं। इसके बाद आता है नवीन साम्राज्यवाद का कालखंड।

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